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लिवर कैंसर
Liver (hepatocellular) cancer in Hindi

लिवर

हमारा लिवर

लिवर (यकृत) हमारे शरीर का सबसे बड़ा आंतरिक अंग है। यह हमारे पेट के ऊपरी हिस्से में पसलियों के पीछे स्थित होता है। लिवर हेपेटोसाइट्स नाम की कोशिकाओं से बना होता है। यकृत में कई अन्य विशेष कोशिकाएं भी होती हैं। यह पाचन के लिए पित्त का उत्पादन करता है। लिवर में पित्त नलिकाओं का एक नेटवर्क पित्त को इकट्ठा करता है और आंत में ले जाता है। विभिन्न प्रकार की रक्त वाहिकाएं और उनकी शाखाएं भी लिवर में फैली हुई होती हैं।

लिवर एक महत्वपूर्ण अंग है और इसके कई महत्वपूर्ण कार्य हैं। यह भोजन के पाचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लिवर के कार्यों में शामिल हैं:

  • रक्त से विषाक्त पदार्थों को निकालना
  • रक्त का थक्का बनाने वाले कारक उत्पन्न करना
  • शरीर में ग्लूकोज़  का सामान्य स्तर बनाए रखना
  • आँतों द्वारा अवशोषित पोषक तत्वों का भंडारण और प्रसंस्करण

लिवर की गांठें

जब एक स्वस्थ कोशिका लगातार विभाजित होने और बढ़ने की क्षमता प्राप्त कर लेती है, तो वह कैंसरग्रस्त हो जाती है। फिर यह एक गाँठ बन जाती है जो आकार में बढ़ती जाती है और फिर शरीर के अन्य अंगों में फैल जाती है। लिवर में विभिन्न प्रकार की कोशिकाएं कई प्रकार के ट्यूमर बना सकती हैं। इनमें से कुछ गैर-कैंसर वाले होते हैं और कुछ कैंसर होते हैं।

कैंसर लिवर में शुरू हो सकता है, या फिर अन्य अंगों में पैदा होकर लिवर में आ सकता है। लिवर में शुरू होने वाला कैंसर प्राथमिक लिवर कैंसर होता है जबकि अन्य अंगों से लिवर में फैलने वाला कैंसर द्वितीयक लिवर कैंसर या मेटास्टेटिक कैंसर होता है।

प्राथमिक लिवर कैंसर

प्राथमिक लिवर कैंसर के कई प्रकार हैं। प्राथमिक लिवर कैंसर में शामिल हैं:

  • हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा (लिवर कैंसर)
  • इंट्राहेपेटिक पित्त नली कैंसर या कोलेंजियोकार्सिनोमा
  • एंजियोसारकोमा: एंजियोसारकोमा दुर्लभ कैंसर हैं। वे यकृत की रक्त वाहिकाओं की कोशिकाओं में शुरू होते हैं। इस कैंसर के होने के जोखिम कारकों में रसायन (विनाइल क्लोराइड, थोरियम डाइऑक्साइड, आर्सेनिक या रेडियम) और वंशानुगत हेमोक्रोमैटोसिस शामिल हैं। 
  • हेपेटोब्लास्टोमा: यह बच्चों में होने वाला दुर्लभ कैंसर है।

द्वितीयक (मेटास्टेटिक) लिवर कैंसर

जब शरीर के किसी अन्य हिस्से से शुरू होने वाला कैंसर लिवर में फैलता है, तो इसे सेकेंडरी या मेटास्टेटिक लिवर कैंसर कहा जाता है। जिस अंग से कैंसर की उत्पत्ति हुई है, वह प्राथमिक साइट है। मेटास्टेटिक यकृत कैंसर के प्राथमिक स्थलों में शामिल हैं: कोलोरेक्टल कैंसर, स्तन कैंसर, अग्नाशय का कैंसर, गुर्दे का कैंसर, फेफड़े का कैंसर, आमाशय का कैंसर, भोजन - नली का कैंसर, पित्ताशय का कैंसर एवं मेलेनोमा (त्वचा कैंसर)।

हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा (लिवर कैंसर)

हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा (HCC) यकृत कोशिकाओं (हेपेटोसाइट्स) का कैंसर है। यह आमतौर पर पहले से ख़राब लिवर (यकृत सिरोसिस) वाले लोगों में होता है। वैश्विक स्तर पर, यकृत कैंसर कैंसर का पांचवा सबसे आम प्रकार है और कैंसर से होने वाली मृत्यु का तीसरा सबसे आम कारण है। यह पुरुषों में तीन गुना अधिक आम है।

लिवर कैंसर के कारण और जोखिम कारक (risk factors)

जोखिम कारक वह होता है जो किसी व्यक्ति में कैंसर होने की संभावना को बढ़ाता है। वे सीधे कैंसर का कारण नहीं बनते हैं, और उनकी मौजूदगी का मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति को कैंसर हो ही जाएगा।

निम्नलिखित कारण किसी व्यक्ति में लिवर कैंसर होने के जोखिम को बढ़ाते हैं।

  • अधिक आयु: उम्र बढ़ने से व्यक्ति को कैंसर होने का खतरा अधिक होता है।
  • लिंग: हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा पुरुषों में अधिक आम है।
  • लिवर सिरोसिस: लिवर सिरोसिस के कारणों में नियमित शराब का सेवन, गैर-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग और वायरल हेपेटाइटिस शामिल हैं।
  • मोटापा और फैटी लिवर (NASH): दुनिया भर में बढ़ते मोटापे ने इसे सिरोसिस और यकृत कैंसर का प्रमुख कारण बना दिया है।
  • वायरल हेपेटाइटिस: हेपेटाइटिस बी (HBV) और हेपेटाइटिस सी (HCV) वायरस लिवर कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं। टीकाकरण से हेपेटाइटिस बी के संक्रमण को रोका जा सकता है। 
  • प्राथमिक पित्त सिरोसिस
  • हेमोक्रोमैटोसिस: इस वंशानुगत रोग के परिणामस्वरूप यकृत में लौह की अधिकता हो जाती है और सिरोसिस हो जाता है।
  • शराब और तंबाकू का दुरुपयोग: शराब से सिरोसिस होता है। धूम्रपान से भी लिवर कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
  • मधुमेह
  • विषाक्त पदार्थ और रसायन: एफ्लाटॉक्सिन, विनाइल क्लोराइड और थोरियम डाइऑक्साइड (थोरोट्रास्ट)।
  • एनाबोलिक स्टेरॉयड: कुछ लोगों द्वारा अपनी ताकत और मांसपेशियों को बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाने वाला हार्मोन।

लिवर कैंसर के संकेत और लक्षण

प्रारंभिक अवस्था में हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा के सामान्यतः कोई लक्षण नहीं दिखाई देते।

जब लक्षण प्रकट होते हैं, तो उनमें शामिल हैं:

  • पीलिया (आंखें, त्वचा और मूत्र का पीला होना)

  • दर्द, विशेष रूप से पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में

  • वजन कम होना

  • भूख न लगना

  • मतली और उल्टी

  • पेट में गांठ

  • लगातार कमजोरी या थकान महसूस करना

ध्यान दें कि इनमें से कई लक्षण कैंसर के अलावा अन्य मामूली बीमारियों में भी हो सकते हैं।

लिवर कैंसर की जांच एवं परीक्षण (डायग्नोसिस)

डायग्नोसिस का मतलब है बीमारी की पहचान करना। निम्नलिखित परीक्षण हमें इस रोग की पहचान करने और बीमारी के चरण का पता लगाने में मदद करेंगे।

स्वास्थ्य और रक्त परीक्षण

एक चिकित्सक द्वारा लक्षणों को समझना और संकेतों की जांच करना बीमारी तक पहुंचने के लिए जरूरी है। रक्त में विभिन्न प्रकार के तत्वों की जांच की जाती है। इसके अलावा, लिवर और किडनी के टेस्ट भी किए जाते हैं। लिवर फंक्शन टेस्ट सिरोसिस के रोगियों में असामान्यता दिखा सकता है। रक्त के थक्के के परीक्षण से पता चलेगा कि लिवर पर्याप्त मात्रा में उन्हें बना रहा है या नहीं। रक्त परीक्षण हेपेटाइटिस बी और सी की भी जांच करेगा।

ट्यूमर मार्कर

रक्त में अल्फा-फेटोप्रोटीन (AFP) नामक मार्कर की जांच की जाएगी। लिवर कैंसर वाले 50% से 70% रोगियों में AFP अधिक होगा। यह स्क्रीनिंग, डायग्नोसिस और निगरानी के लिए एक उपयोगी परीक्षण है।

इमेजिंग टेस्ट्स (स्कैन्स)

अल्ट्रासाउंड: यह आपके पेट के अंदर देखने के लिए एक बुनियादी जांच है। इसमें ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है जो आंतरिक अंगों से टकराती हैं और कंप्यूटर मॉनिटर पर उनकी तस्वीर बनाती हैं।

कंप्यूटेड टोमोग्राफी (CT) स्कैन: इस टेस्ट में मरीज को एक सीटी स्कैनर में रखा जाता है। फिर एक्स-रे की किरणें चारों तरफ से अंदरूनी अंगों की छवि लेती है। कंप्यूटर इन छवियों को विकसित कर हमें अंदरूनी स्थिति के बारे में सटीक जानकारी देते हैं। कंट्रास्ट का इंजेक्शन देने से हमें बेहतर छवि मिलती है। लिवर कैंसर में ट्रिपल फेज, थिन कट एवं हाई रेसोलुशन स्कैन करना होता है। CT स्कैन लिवर में कैंसर के आकार, संख्या और स्थान के बारे में जानकारी देता है। यह लिवर में पित्त नलियों और रक्त वाहिकाओं से कैंसर के संबंध को दर्शाता है। यह ट्यूमर के आस-पास के लिम्फ नोड्स और दूर के अंगों में फैलने का भी पता लगाएगा।

पोजीट्रान एमिशन टोमोग्राफी (PET) स्कैन: कैंसर कोशिकाएं ग्लूकोज ज्यादा मात्रा में लेती हैं। इस टेस्ट में रेडियोएक्टिव ग्लूकोज (18एफ-फ्लोरोडीऑक्सी; FDG  or FAPI) का इंजेक्शन देते हैं। यह रेडियोएक्टिव ग्लूकोज ट्यूमर में चला जाता है जिसे हम स्कैनर से देख सकते हैं।

मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (MRI): एक्स-रे के बजाय यह टेस्ट रेडियो तरंगों, और शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग करता है। MRI लिवर ट्यूमर के प्रकारों को पहचानने के लिए एक उपयोगी तरीका है।

बायोप्सी

बायोप्सी का अर्थ है कि ट्यूमर के एक छोटे से हिस्से का नमूना लेना और माइक्रोस्कोप के द्वारा इसकी जांच करना। यह एक पैथोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है। यदि आवश्यक हो तो बायोप्सी नमूनों पर जीन परीक्षण भी किया जा सकता है। यह बायोप्सी अल्ट्रासाउंड या CT मार्गदर्शन के द्वारा की जाती है। लिवर कैंसर (HCC) के डायग्नोसिस के लिए हमेशा बायोप्सी की आवश्यकता नहीं होती है। हमें इसकी आवश्यकता केवल तभी होती है जब AFP और इमेजिंग अध्ययनों के आधार पर डायग्नोसिस अनिश्चित हो।

लिवर कैंसर का प्रसार (चरण) निर्धारित करना (स्टेजिंग)

कैंसर की गांठ से कैंसर कोशिकाएं निकलती है और शरीर में तीन प्रकार से फैलती हैं;

  1. रक्त के माध्यम से
  2. लिंफेटिक के माध्यम से
  3. सीधे आसपास के उत्तकों में

कैंसर का फैलाव स्थानीय हो सकता है, आसपास के उत्तकों में और लिंफ नोड्स में। या दूरवर्ती हो सकता है, लिवर, फेफड़े हड्डियों और पेट के अंदर की परत (पेरीटोनियम) में। कैंसर जब दूर के अंगों में फैल जाता है तो उसे मेटास्टैसिस (metastasis) कहते हैं।

किसी भी कैंसर की गंभीरता या चरण का अनुमान यह देख कर लगाया जाता है कि यह कहाँ कहाँ फैला है। यह कितनी हद तक लिवर और उसके आसपास के ऊतकों में फ़ैल चूका है और शरीर के अन्य आंतरिक अंगो में गया है की नहीं। इसे हम स्टेजिंग कहते हैं।

इमेजिंग टेस्ट्स (स्कैन्स) हमें कैंसर को एक चरण प्रदान करने में मदद करते हैं। मोटे तौर पर हम कैंसर को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं:

  1. स्थानीय - कैंसर उस अंग तक सीमित है जिसमें यह शुरू हुआ था।
  2. स्थानीय प्रसार - कैंसर आसपास के लिम्फ नोड्स में फैल गया है या उस अंग की दीवार से बाहर आ गया है जिसमें यह शुरू हुआ था।
  3. दूर तक फैला हुआ - कैंसर दूर के अंगों तक फैल गया है, जो ट्यूमर की उत्पत्ति के अंग से दूर है। इसे मेटास्टेसिस कहा जाता है।

लिवर कैंसर के चरण निर्धारण के लिए कई स्टेजिंग प्रणालियों का उपयोग किया जाता है।

TNM (ट्यूमर, नोड और मेटास्टेसिस) वर्गीकरण

इन जांचों के बाद, ट्यूमर को I से IV तक में से एक चरण दिया जाएगा। यह वर्गीकरण अमेरिकन जॉइंट कमेटी ऑन कैंसर (AJCC) द्वारा विकसित किया गया है। इसका उपयोग कैंसर की स्टेज के सटीक वर्गीकरण के लिए किया जाता है। यह निम्नलिखित तीन प्रमुख तत्वों पर आधारित है और स्टेज I से लेकर IV तक होता है।

  • ट्यूमर (T) : ट्यूमर का आकार (साइज़) क्या है? कितने ट्यूमर हैं? क्या यह आस-पास की रक्त वाहिकाओं में जा रहा है? क्या कैंसर आस-पास के अंगों तक पहुँच गया है?
  • पास के लिम्फ नोड्स (N): क्या कैंसर पास के लिम्फ नोड्स में फैल गया है? और कितने लिंफ नोड्स में?
  • दूर के अंगों तक फैला हुआ (मेटास्टेसिस) (M): क्या कैंसर दूर के लिम्फ नोड्स या दूर के अंगों जैसे लिवर या फेफड़ों में फैल गया है?

टी, एन और एम के आगे संख्या और अक्षर लिखे जाते हैं जो और ज्यादा विवरण देते हैं। संख्या जितनी अधिक होती है कैंसर उतना ही बढ़ा हुआ होता है। टी, एन और एम से मिली जानकारी को मिलाकर हम कैंसर को एक चरण प्रदान करते हैं। लिवर कैंसर चरण I से IV तक होता है। चरण I से III तक स्थानीयकृत रोग होता है और चरण IV फैला हुआ कैंसर (मेटास्टैटिक रोग) है।

कैंसर से उबरने की संभावना इलाज के समय कैंसर के चरण पर निर्भर करती है। जितना कम चरण उतनी बेहतर संभावना।

बार्सिलोना क्लिनिक लिवर कैंसर सिस्टम (BCLC)

बीसीएलसी प्रणाली ट्यूमर के आकार, विस्तार और लिवर की कार्यात्मक स्थिति के आधार पर लिवर कैंसर के रोगियों को वर्गीकृत करती है।

लिवर कैंसर का उपचार

लिवर कैंसर का उपचार लिवर की स्थिति, कैंसर के चरण और मरीज के समग्र स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। शुरुआती ट्यूमर में, जिसमें लिवर ठीक से काम कर रहा हो, उपचार का उद्देश्य कैंसर को खत्म करना और रोगी को ठीक करना होता है। उन्नत अवस्था में, जब लिवर ठीक से काम नहीं कर रहा हो, तो उपचार का उद्देश्य ट्यूमर की वृद्धि को धीमा करना, लक्षणों से राहत देना और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना होता है।

लिवर कैंसर के लिए सर्जरी

यदि ऑपरेशन संभव हो तो लिवर कैंसर के लिए यह सबसे प्रभावी उपचार है। इसमें कैंसर वाले लिवर के हिस्से को हटा दिया जाता है।  इसका उपयोग केवल तभी किया जा सकता है जब ट्यूमर लिवर से बाहर न फैला हो। लिवर कैंसर के इलाज के लिए दो प्रकार की शल्य प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है।

हेपेटेक्टोमी या लिवर रिसेक्शन

हेपेटेक्टोमी में लिवर के कैंसर वाले हिस्से को स्वस्थ मार्जिन के साथ हटाया जाता है। यह तब किया जाता है जब सर्जरी के बाद बचा हुआ लिवर पर्याप्त आकार का है और अच्छी तरह से काम करता है। बचा हुआ लिवर कुछ हफ्तों में बढ़ता है। हम चयनित रोगियों में यह प्रक्रिया लेप्रोस्कोपिक या रोबोटिक पद्धति से कर सकते हैं।

लिवर प्रत्यारोपण (लिवर ट्रांसप्लांट)

लिवर कैंसर के अधिकांश मामले लिवर सिरोसिस वाले मरीज़ों में होते हैं। ज़्यादातर रोगी लिवर रिसेक्शन के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं क्योंकि बचा हुआ लिवर पर्याप्त आकार का नहीं होता है या ठीक से काम नहीं कर रहा होता है। इन रोगियों में लिवर प्रत्यारोपण एक विकल्प है। लेकिन लिवर प्रत्यारोपण भी हर मरीज़ का नहीं किया जा सकता। इसको करने के लिए कुछ मानदंड हैं जिनमें ट्यूमर का आकार, AFP और संख्या शामिल है।

एब्लेशन

एब्लेशन में ट्यूमर कोशिकाओं को मारने के लिए अत्यधिक गर्मी, ठंड या रसायन का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग छोटे ट्यूमर या खराब लिवर फंक्शन में किया जा सकता है। यह 2 सेमी और उससे छोटे ट्यूमर के लिए ज्यादा प्रभावी है। इसमें रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (RFA), माइक्रोवेव एब्लेशन गर्मी (MWA), क्रायोएब्लेशन या क्रायोथेरेपी और परक्यूटीनियस इथेनॉल इंजेक्शन (PEI) जैसी तकनीक शामिल हैं।

विकिरण चिकित्सा (रेडियोथेरेपी)

विकिरण चिकित्सा में ट्यूमर कोशिकाओं को मारने के लिए उच्च ऊर्जा वाले एक्स-रे का उपयोग किया जाता है। स्टीरियोटैक्टिक बॉडी रेडिएशन थेरेपी (SBRT) ट्यूमर को विकिरण की ज्यादा खुराक देने की एक तकनीक है, जबकि आस-पास के ऊतकों और अंगों को बचाया जाता है। विकिरण चिकित्सा का उपयोग उन ट्यूमर में किया जाता है जो सर्जरी के लिए अनुकूल नहीं होते हैं।

एम्बोलिज़ेशन थेरेपी
ट्रांस-आर्टेरियल कीमोएम्बोलाइज़ेशन (TACE) या ट्रांस-आर्टेरियल रेडियोएम्बोलाइज़ेशन (TARE)

एम्बोलाइज़ेशन का मतलब है ट्यूमर की रक्त आपूर्ति को रोकना। ट्यूमर को रक्त की आपूर्ति करने वाली वाहिका में एक कैथेटर डाला जाता है और छोटे कणों और अन्य एजेंटों से उसे अवरुद्ध कर दिया जाता है। इस दौरान कीमोथेरेप्यूटिक एजेंट और रेडियोधर्मी बीड्स को भी सीधे ट्यूमर में पहुंचाया जा सकता है, जिसे कीमोएम्बोलाइज़ेशन या रेडियोएम्बोलाइज़ेशन कहा जाता है। एम्बोलाइज़ेशन उन रोगियों के लिए एक विकल्प है जिनके ट्यूमर का ऑपरेशन या एब्लेशन नहीं किया जा सकता है।

टार्गेटेड थेरेपी (Targeted therapy)

पदार्थ जो सामान्य कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाए बिना कैंसर कोशिकाओं की पहचान करते हैं और उन पर लक्ष्य करते हैं। यह कैंसर के विशिष्ट जीन, प्रोटीन या कैंसर के विकास के लिए जिम्मेदार ऊतक वातावरण को लक्षित करता है।

इम्मुनोथेरपी (Immunotherapy)

यह कैंसर से लड़ने के लिए रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी) का उपयोग करता है। इम्यून चेकपॉइंट इनहिबिटर थेरेपी इम्यूनोथेरेपी का एक प्रकार है।

पैलिएटिव (palliative) उपचार

एब्लेशन में ट्यूमर कोशिकाओं को मारने के लिए अत्यधिक गर्मी, ठंड या रसायन का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग छोटे ट्यूमर या खराब लिवर फंक्शन में किया जा सकता है। यह 2 सेमी और उससे छोटे ट्यूमर के लिए ज्यादा प्रभावी है। इसमें रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (RFA), माइक्रोवेव एब्लेशन गर्मी (MWA), क्रायोएब्लेशन या क्रायोथेरेपी और परक्यूटीनियस इथेनॉल इंजेक्शन (PEI) जैसी तकनीक शामिल हैं।

लिवर कैंसर का निदान (Prognosis)

सर्वाइवल रेट्स

कैंसर के इलाज के बाद जीवित रहने की संभावना को 5-साल सर्वाइवल रेट्स (5-year survival rates) में मापा जाता है। यह इलाज के बाद कैंसर से छुटकारा पाने और जीवित रहने की संभावना को दर्शाता है। सर्वाइवल रेट कैंसर के प्रकार और स्टेज पर निर्भर करता है।

नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के अनुसार, लिवर कैंसर का पता चलने के बाद कम से कम पांच साल तक जीवित रहने वाले लोगों का प्रतिशत लिवर में स्थानीय कैंसर के लिए 37.3%, क्षेत्रीय स्तर पर फैलने वाले कैंसर के लिए 13% और दूर तक फैले कैंसर के लिए 3.3% है।

लिवर कैंसर की स्क्रीनिंग

कैंसर की स्क्रीनिंग का मतलब है स्वस्थ दिखने वाले व्यक्तियों में कैंसर की जांच करना। इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति में इसके लक्षण दिखने से पहले ही कैंसर का पता लगाना है। अगर हम कैंसर का पहले पता लगा लें, तो हम उसका बेहतर इलाज कर सकते हैं।

लिवर कैंसर की जांच उन रोगियों में की जाती है, जिन्हें सिरोसिस और वायरल हेपेटाइटिस जैसी बीमारी होती है। जांच के विकल्पों में अल्फा फीटोप्रोटीन (AFP) के लिए रक्त परीक्षण और अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे इमेजिंग अध्ययन शामिल हैं।

लिवर कैंसर के जोखिम को कैसे कम करें?

हम लिवर कैंसर के विकास के जोखिम को कम कर सकते हैं। टीका हेपेटाइटिस बी से बचाव कर सकता है। शराब का सेवन कम करके और स्वस्थ वजन बनाए रखकर सिरोसिस से बचा जा सकता है। नियमित व्यायाम, अच्छा आहार और स्वस्थ वजन बनाए रखने से फैटी लिवर (NASH) को रोका जा सकता है। हेपेटाइटिस बी और सी का उपचार अब उपलब्ध है और पर्याप्त उपचार लिवर कैंसर के जोखिम को कम करने में मदद करता है।

  • धूम्रपान और शराब का सेवन न करें
  • हेपेटाइटिस बी का टीका लगवाएं
  • यदि आपको हेपेटाइटिस है, तो इलाज कराएं
  • नियमित व्यायाम, स्वस्थ आहार और आदर्श वजन बनाए रखें
  • यदि आपको जोखिम है तो नियमित रूप से लिवर कैंसर की जांच (स्क्रीनिंग) करवाएं

सतर्क रहें! स्वस्थ रहें!

About Author

Dr. Nikhil Agrawal
MS, MCh

This site helps you understand the disease process, best treatment options and outcome of gastrointestinal, hepatobiliary and pancreatic diseases and cancers. Dr. Nikhil Agrawal is Director of GI-HPB Surgery and Oncology at Max Superspeciality Hospital Saket, New Delhi and Max Hospital, Gurugram in India.