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पित्ताशय पॉलीप्स
Gallbladder polyps in Hindi

पित्ताशय (Gallbladder)

पित्ताशय एक नाशपाती के आकार का अंग है जो आपके ऊपरी पेट में दाहिने तरफ, लिवर के नीचे और पसलियों के पीछे होता है। यह पित्त को संग्रहीत करता है, गाढ़ा करता है और जब हम खाना खाते हैं तो उसे छोड़ देता है। पित्त लिवर द्वारा निर्मित एक पाचक रस है। पित्ताशय पित्त नली (CBD) नामक एक पतली ट्यूब के माध्यम से लिवर और आंत से जुड़ा होता है। पित्त नली (CBD) पित्त को लिवर और पित्ताशय से छोटी आंत तक ले जाती है।

पॉलीप्स (Polyps)

पॉलीप्स कोशिकाओं और ऊतकों का असामान्य विकास हैं। वे पित्ताशय की दीवार की आंतरिक परत पर छोटे उभार या मशरूम की तरह दिखते हैं।

पित्ताशय में पॉलीप्स होना अपेक्षाकृत सामान्य बात हैं। वे 5% लोगों में होते हैं। पेट का अल्ट्रासाउंड करने पर 3%-7% लोगों में पित्ताशय की थैली के पॉलीप मिलेंगे।

अधिकांश पित्ताशय की थैली के पॉलीप्स गैर-कैंसर वाले होते हैं। कुछ बड़े पॉलीप्स कैंसर होते हैं या कैंसर बन सकते हैं।

पित्ताशय में पॉलीप बनने के कारण

पित्ताशय की थैली पॉलिप के जोखिम कारकों में शामिल हैं:

  • पित्त में उच्च कोलेस्ट्रॉल या लवण
  • पित्ताशय की पथरी
  • पारिवारिक पॉलीपोसिस
  • गार्डनर सिंड्रोम
  • प्यूट्ज़-जेगर्स सिंड्रोम
  • हेपेटाइटिस बी

पित्ताशय पॉलीप्स के प्रकार

पित्ताशय की थैली के पॉलीप्स को छद्म पॉलीप्स (pseudopolyps) और असली पॉलीप्स (true polyps) में वर्गीकृत किया गया है।

छद्म पॉलीप्स (Pseudopolyps)

अधिकांश (95%) पॉलीप्स स्यूडोपोलिप्स होते हैं। इसमें कैंसर का कोई खतरा नहीं होता और आम तौर पर ऑपरेशन की जरूरत नहीं होती।

स्यूडोपोलिप्स के प्रकारों में शामिल हैं:

  • कोलेस्ट्रॉल पॉलीप्स
  • एडिनोमायोमैटोसिस
  • सूजन संबंधी पॉलीप्स

असली पॉलीप्स (True Polyps)

लगभग 5% पॉलीप्स असली पॉलीप्स होते हैं।

  • एडेनोमा: वे आमतौर पर गैर-कैंसर वाले होते हैं। वे सभी पित्ताशय पॉलीप्स का 4%-7% बनाते हैं।
  • एडेनोकार्सिनोमा; पित्ताशय का कैंसर: 15-25% पित्ताशय का कैंसर पॉलिप के रूप में पाया जाता है।

Figure: प्रकार

पित्ताशय पॉलीप्स के प्रकार

पित्ताशय (गॉलब्लेडर) के पॉलीप्स के लक्षण

अधिकांश लोगों में कोई लक्षण नहीं होते हैं। पॉलिप का पता तब चलता है जब किसी अन्य बीमारी के लिए या नियमित स्वास्थ्य जांच के दौरान अल्ट्रासाउंड या कोई और स्कैन किया जाता है।

कभी-कभी, लक्षण हो सकते हैं और इन लक्षणों में शामिल हैं:

  • पेट में दर्द
  • पेट की परेशानी
  • अपच
  • पेट फूलना
  • जी मिचलाना

पित्ताशय पॉलीप के खतरे

पित्ताशय के पॉलिप का सबसे बड़ा खतरा कैंसर है। पित्ताशय का कैंसर एक आक्रामक बीमारी है। चूँकि कुछ पॉलीप्स कैंसर हो सकते हैं या कैंसर में बदल सकते हैं, इसलिए ऐसे पॉलिप्स को पहचानना जरूरी है।

पॉलिप्स, पित्ताशय में सूजन, पित्त की नली में इन्फेक्शन और अग्नाशय (पैंक्रियाज) में सूजन (पेनक्रिएटाइटिस) भी कर सकते हैं।

पित्ताशय के पॉलिप की जांच (डायग्नोसिस)

डायग्नोसिस का अर्थ है किसी रोग की पहचान करना। निम्नलिखित परीक्षण हमें पित्ताशय के पॉलीप की डायग्नोसिस करने और प्रकार का पता लगाने में मदद करेंगे।

स्वास्थ्य परीक्षण: एक चिकित्सक द्वारा लक्षणों को समझना और संकेतों की जांच करना बीमारी तक पहुंचने के लिए जरूरी है।

रक्त परीक्षण: रक्त में विभिन्न प्रकार के तत्वों की जांच की जाती है।इसके अलावा, लिवर और किडनी के टेस्ट भी किए जाते हैं।

अल्ट्रासाउंड (USG) : अल्ट्रासाउंड स्कैन शरीर के अंदर की छवि बनाने के लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग करता है। यह लीवर, पित्ताशय और पित्त नलिकाओं को देखने के लिए एक बुनियादी परीक्षण है। अधिकांश पित्ताशय की थैली के पॉलीप्स की पहचान अल्ट्रासाउंड पर की जाती है।

एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड (EUS): यह पेट के अंदर से पित्ताशय का अल्ट्रासाउंड है। यह परीक्षण पॉलीप के प्रकार को पहचानने में उपयोगी हो सकता है।

कंप्यूटेड टोमोग्राफी (CT) स्कैन: इस टेस्ट में मरीज को एक सीटी स्कैनर में रखा जाता है। फिर एक्स-रे की किरणें चारों तरफ से अंदरूनी अंगों की छवि लेती है। कंप्यूटर इन छवियों को विकसित कर हमें अंदरूनी स्थिति के बारे में सटीक जानकारी देते हैं। कंट्रास्ट का इंजेक्शन देने से हमें बेहतर छवि मिलती है।

मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (MRI): एक्स-रे के बजाय यह टेस्ट रेडियो तरंगों, और शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग करता है।

पोजीट्रान एमिशन टोमोग्राफी (PET) स्कैन: कैंसर कोशिकाएं ग्लूकोज ज्यादा मात्रा में लेती हैं। इस टेस्ट में रेडियोएक्टिव ग्लूकोज (18एफ-फ्लोरोडीऑक्सी; FDG) का इंजेक्शन देते हैं। यह रेडियोएक्टिव ग्लूकोज ट्यूमर में चला जाता है जिसे हम स्कैनर से देख सकते हैं।

पित्ताशय के पॉलीप में कैंसर के जोखिम कारक (risk factors)

कैंसरग्रस्त और गैर-कैंसर वाले पॉलीप्स के बीच अंतर करना बहुत महत्वपूर्ण है। एक गैर-कैंसर वाले पॉलिप को समय समय पर देखा जा सकता है, जबकि कैंसर के खतरे वाले पॉलिप का ऑपरेशन किया जाता है। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण मानदंडों में से एक, पॉलिप की लंबाई चौड़ाई (size) है।

पॉलिप का आकार (size)

10 मिमी से बड़ा पॉलीप कैंसर का संकेतक है और पित्ताशय की थैली (गॉलब्लेडर) हटाने की सर्जरी (कोलेसिस्टेक्टोमी) ऐसे में करनी चाहिए। 10 मिमी से कम के पॉलीप में कैंसर होने की संभावना कम होती है। 5 मिमी से छोटे पॉलीप्स में कैंसर का खतरा बेहद कम होता है।

पॉलीप में कैंसर के अन्य जोखिम कारक

  • उम्र 50 वर्ष से अधिक
  • भारतवर्ष का निवासी (एक दिशानिर्देश के अनुसार भारतीयों को 6-9 मिमी पॉलीप के लिए सर्जरी करानी चाहिए)
  • प्राइमरी स्केलेरोसिंग कोलिन्जाइटिस (PSC वाले रोगियों में 40-60% पॉलीप्स कैंसर हो सकते हैं)
  • चपटे या सेसाइल पॉलीप्स
  • इकलौता पॉलीप
  • पित्ताशय की दीवार का मोटा होना (>3 मिमी)
  • साथ में पित्त की पथरी

पित्ताशय (गॉलब्लेडर) के पॉलिप का उपचार

पित्ताशय के पॉलीप्स का उपचार पॉलीप में कैंसर के खतरे पर निर्भर करता है। सभी को ऑपरेशन करके हटाना उचित नहीं है क्योंकि अधिकांश पॉलीप्स छद्म पॉलीप्स हैं जिनमें कैंसर का कोई खतरा नहीं है।

जिन लोगों को कैंसर का खतरा है उनकी सर्जरी करनी चाहिए। इनमें 10 मिमी से बड़े पॉलीप्स और पहले बताए गए कैंसर के अन्य जोखिम कारक शामिल हैं। जिन लोगों में कैंसर का खतरा बहुत कम या बिल्कुल नहीं होता है, उनमें पॉलीप को केवल अल्ट्रासाउंड से ही देखा जाता है। जिन लोगों में पॉलीप लक्षण पैदा कर रहे होते हैं, उन्हें भी सर्जरी की जरूरत होती है।

Fig: पित्ताशय (गॉलब्लेडर) के पॉलिप का उपचार

पित्ताशय (गॉलब्लेडर) के पॉलिप का उपचार

आगे की जांच

10 मिलीमीटर से कम आपके पॉलिटिक्स को समय समय पर देखा जा सकता है।हम निम्नलिखित प्रोटोकॉल का पालन करते हैं।

5 मिमी से कम पॉलीप्स: 6 महीने, 1 साल, 3 साल और 5 साल में अल्ट्रासाउंड।

5-9 मिमी पॉलीप्स: अल्ट्रासाउंड स्कैन 3 महीने, 6 महीने पर और फिर सालाना।

यदि पॉलीप 10 मिमी हो जाता है या आकार में 2 मिमी बढ़ जाता है तो ऑपरेशन करते हैं।

पित्ताशय (गॉलब्लेडर) के पॉलिप के लिए सर्जरी

जिन लोगों के पॉलीप में कैंसर होने या विकसित होने का खतरा होता है, उनका ऑपरेशन किया जाता है। सर्जरी का प्रकार कैंसर के खतरे पर निर्भर करता है। पित्ताशय की थैली हटाने की सर्जरी को कोलेसिस्टेक्टोमी कहा जाता है।

कैंसर की उपस्थिति की संभावना के आधार पर इन रोगियों में निम्नलिखित ऑपरेशन किये जाते है

कोलेसिस्टेक्टोमी

इसमें केवल पित्ताशय को हटाया जाता है। ऐसा तब किया जाता है जब पॉलीप के कैंसरग्रस्त होने की संभावना न्यूनतम हो।

रेडिकल कोलेसिस्टेक्टोमी

यह पित्ताशय के कैंसर के लिए एक शल्य प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया तब की जाती है जब हमें लगता है कि पॉलीप कैंसरग्रस्त है। इसमें पित्ताशय के पास वाले लिवर के हिस्से को भी हटाया जाता है। पित्ताशय के क्षेत्र में लिम्फ नोड्स भी हटा दिए जाते हैं।

सिस्टिक प्लेट कोलेसिस्टेकटॉमी या प्रत्याशित रेडिकल कोलेसिस्टेक्टोमी

जब पॉलिप के कैंसर होने की संभावना अस्पष्ट हो, पित्ताशय को लीवर बेड के साथ हटा दिया जाता है और उसकी उसी समय बीओप्सी जांच (फ्रोजन सेक्शन) की जाती है। यदि कैंसर मौजूद है, तो लिम्फ नोड्स को भी साफ किया जाता है।

Fig: पित्ताशय (गॉलब्लेडर) के पॉलिप के लिए सर्जरी

पित्ताशय (गॉलब्लेडर) के पॉलिप के लिए सर्जरी

सर्जन ये सर्जरी दो तरीकों से करते हैं

  • ओपन
  • लेप्रोस्कोपिक, या रोबोटिक

ओपन सर्जरी में, सर्जरी करने के लिए पेट पर एक लंबा चीरा लगाया जाता है।

लैप्रोस्कोपिक सर्जरी ऑपरेशन करने की एक विशेष तकनीक है, जिसे की-होल सर्जरी, मिनिमली इनवेसिव सर्जरी या मिनिमल एक्सेस सर्जरी के रूप में भी जाना जाता है। इसमें, बड़े चीरे के बजाय, आपके पेट के ऊपर छोटे छोटे छेदों द्वारा विशेष उपकरणों और एक कैमरे को डाल कर ऑपरेशन किया जाता है। ये उपकरण विशेष बनावट से पतले एवं लम्बे बनाये जाते हैं। कैमरा एक बड़ी स्क्रीन पर आपके पेट के अंदर की उच्च रिज़ॉल्यूशन छवियों को प्रोजेक्ट करता है, जिसे देख कर सर्जन पेट के अंदर ऑपरेशन करते हैं। यह तकनीक पिछले कुछ दशकों में सर्जिकल फील्ड के सबसे महत्वपूर्ण अविष्कारों में से एक है जिसने पेट की सर्जरी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। सर्जरी की यह तकनीक अब पेट के ज़्यादातर ऑपरेशन्स के लिए उपलब्ध एवं मान्य है। इस तकनीक का उपयोग पेट के कैंसर के ऑपरेशन में भी लाभदायक है।

लैप्रोस्कोपिक, या रोबोटिक सर्जरी के लाभ

पेट की ओपन सर्जरी में बड़ा चीरा लगता है और इसकी वजह से ठीक होने में वक़्त लगता है और अस्पताल में लंबे समय तक रहना पड़ता है। मिनिमली इनवेसिव सर्जरी का अर्थ है "कम दर्द", "न्यूनतम निशान" और "तेज़ रिकवरी"। आईसीयू और अस्पताल में कम रहना पड़ता है। बड़े मॉनिटर पर पेट के अंदर का दृश्य बड़ा होने के कारण सर्जरी के दौरान रक्त की हानि कम होती है। आप जल्दी से चलना और मुँह से खाना शुरू कर सकते हैं। ओपन सर्जरी की तुलना में इन्फेक्शन और हर्निया का खतरा भी कम होता है।

सतर्क रहें! स्वस्थ रहें! और खुश रहें!

About Author

Dr. Nikhil Agrawal
MS, MCh

This site helps you understand the disease process, best treatment options and outcome of gastrointestinal, hepatobiliary and pancreatic diseases and cancers. Dr. Nikhil Agrawal is Director of GI-HPB Surgery and Oncology at Max Superspeciality Hospital Saket, New Delhi and Max Hospital, Gurugram in India.